Monday, November 14, 2016

जहाँ मात-पिता सुत मीत न भाई।

जहाँ मात-पिता सुत मीत न भाई। मन उहाँ नाम तेरे संग सहाई।।
जहाँ महाभयानक दूत जम दले, तहाँ केवल नाम संग तेरे चले।।
जहाँ मुश्किल होवे अति भारी, हर को नाम खिन माहिं उधारि।।
अनिक पुण्याचरण करत नहीं तरे, हर को नाम कोटि पाप परिहरे।।
गुरुमुख नाम जपो मन मेरे, नानक पावो सुख घनेरे।।
अर्थः-पंचम पादशाही जी उपदेश करते हैं कि ऐ जीव! जब अन्तिम काल में माता-पिता, पुत्र-मित्र आदिक तेरा साथ छोड़े देगें वहाँ मालिक का नाम ही तेरी सहायता करेगा और जिस मार्ग में बड़े भयानक यम के दूत तुझे मारेंगे वहाँ पर केवल मालिक का नाम ही तेरा साथ देगा। और जहाँ बड़े से बड़ी कठिनाइयां सामने आयेंगी वहाँ पर प्रभु के सच्चे नाम के प्रताप से वे सब क्षण भर में दूर हो जायेंगी। जहाँ तू अनेकों पुण्य-दान आदि शुभकर्म करने से भी पार नहीं हो सकता। वहाँ मालिक के सच्चे नाम की शरण लेने से करोड़ों पाप दूर हो जायेंगे और जीव भवसागर को तर जायेगा। अन्त में समझाते हैं कि ऐ मेरे मन! तू गुरुमुख बनकर अर्थात् गुरु की शरण और सहारा लेकर नाम जप जिससे तू अगणित सुखों का भागी बन जावे। यह तेरा अपना मुख्य कर्म है और इसीलिये ही मनुष्य देह मिली है नहीं तो पीछे पछताना पड़ेगा।

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