Friday, November 4, 2016

राजन कउनु तुमारै आवै।।

राजन कउनु तुमारै आवै।।
ऐसो भाउ बिदर को देखियो ओहु गरीबु मोहि भावै।।1।।रहाउ।।
हसती देखि भरम ते भूला रुाी भगवानु न जानिआ।।
तुमरो दुधु बिदर को पानी अंमृतु करि मैं मानिआ।।1।।
खीर समानि सागु मैं पाइआ गुन गावत रैनि बिहानी।।
कबीर की ठाकरु अनद बिनोदी जाति न काहू की मानी।।2।।
हे महाराजा दुर्योधन! तुम्हारे पास कोई क्यों आये जब कि तुम्हारे ह्मदय में राज्य का मद है, परन्तु विदुर जी की दीनता,नम्रता और भक्ति-भावना को देखकर हमारा दिल उस पर रीझ गया है। हे राजन्! तुम तो अपने राजमद के भ्रम में पड़कर ऐसे भूल गये हो कि श्री भगवान को भी नहीं जानते। परन्तु विदुर जी के ह्मदय में भगवान का अत्यन्त प्रेम है,इसी कारण तुम्हारे घर के दूध को त्याग कर विदुर के घर के जल को मैने अमृत करके माना और साग को खीर के समान जानकर बड़े प्रेम से खाया। मालिक के गुणानुवाद गाते हुए रात बड़े सुख से व्यतीत की। श्री कबीर साहिब फरमाते हैं कि प्रभु को सदा श्रद्धालु भक्त ही प्रिय होते हैं। किसी की जात-पात को न देखकर वे केवल उसकी श्रद्धा-भावना निहार कर उस पर दयाल हो जाते हैं।

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