Wednesday, September 28, 2016

मोर तोर की जेवरी, बटि बाँधा संसार।

मोर तोर की जेवरी, बटि बाँधा संसार।
दास कबीरा क्यों बँधै, जाके नाम आधार।।
मैं मैं बुरी बलाय है, सको तो निकसो भागि।
कहैं कबीर कब लगि रहै, रुई लपेटी आगि।।
अर्थः-""श्री कबीर साहिब उपदेश करते हैं कि स्वयं ही मेरे तेरे पने की एक सुदृढ़ रस्सी बट कर यह जगत उसमें बँध रहा है। परन्तु मालिक के सच्चे दास इस बन्धन में कभी नहीं बँधते, क्योंकि उन्होंने ममता अहंता को त्यागकर मालिक के नाम का आधार जो ले रखा है।'' "" मैं मैं अर्थात् ममता बहुत बुरी बला है। जहाँ तक सम्भव हो, इसके फन्दे से निकल भागने का यत्न करो। यदि अपनी सुरक्षा अभीष्ट है, तो इस ममता का परित्याग करना ही होगा। रुई में लिपटी आग भला कब तक रह सकेगी? अन्ततः रुई को जला कर ही मानेगी। इसी प्रकार मैं-मेरी के विचारों की अग्नि भी अन्त में मनुष्य की भक्ति प्रेम की भावनाओं को नष्ट भ्रष्ट करके उसी लुटिया ही डुबो देगी।''

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