Sunday, September 11, 2016

कबीर मन तीखा किया लाइ बिरह खरसान।

कबीर मन तीखा किया लाइ बिरह खरसान।
चित चरनों से चिपटिया, का करै काल का बान।।
अर्थः-बिरह और प्रेमाभक्ति एक प्रकार की खरसान है। जब मन को इस खरसान पर लगाया जाता है; तो उसकी सब मलिनता, अपवित्रता, सुस्ती और कमज़ोरी दूर होती है। तथा इन दुर्गुणों के बदले उसमें सच्चाई, भक्ति प्रेम और परमार्थ का बल भर जाता है। तब यही मन मनुष्य को आत्मोन्नति के शिखर की ओर ले जाने का साधन बन जाता है। भक्ति-बल पाकर मन प्रतिक्षण मालिक से मिलने की तड़प में व्याकुल रहता है। मानो प्रतिपल मालिक के चरणों से चिमटा हुआ है। क्योंकि जिस मन में सच्ची तड़प और लगन है, उसे सदा मालिक से मिला और जुड़ा हुआ ही जानना चाहिये। तथा जब मन मालिक से मिला रहेगा। तो काल का बाण उसका क्या बिगाड़ सकता है?

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