Friday, August 19, 2016

कथनी मीठी खाँड सी, करनी विष की लोय।

कथनी मीठी खाँड सी, करनी विष की लोय।
कथनी तजि करनी करै, तो विष से अमृत होय।।
करनी बिन कथनी कथे, गुरु पद लहै न सोय।
बातों के पकवान से, ध्रापा नाहीं होय।।
करनी बिन कथनी कथ, अज्ञानी दिन रात।
कूकर ज्यों भूँसत फिरे, सुनी सुनाई बात।।
अर्थः-""कथनी तो खाँड जैसी मीठी भासती है तथा करनी अथवा आचरण विष के समान कड़वा प्रतीत होता है। परन्तु मनुष्य यदि कथनी बातें त्यागकर अपने सात्विक ज्ञान को आचरण का रुप दे दे, तो विष को भी अमृत बना सकता और बना लेता है।'' ""जो व्यक्ति कथनी बातें तो बढ़ बढ़कर बनाता है, किन्तु आचरण से
कोरा है; वह गुरु भक्ति को कदापि प्राप्त नहीं कर सकता। क्योंकि बातों के पक्वान्नों से आज तक किसी की क्षुधा शान्त होती नहीं देखी गयी। अर्थात् क्षुधातुर मनुष्य यदि उत्तमोत्तम स्वादिष्ट पक्वान्नों के नाम ही रटता रहे, तो उसका पेट कभी भरेगा नहीं। विपरीत इसके यदि रुखी सूखी रोटी के दो कौर खा ले, तो उसकी क्षुधा एवं व्याकुलता का अन्त हो सकता है तथा मन को तुरन्त शान्ति एवं तृप्ति उपलब्ध होती है।'' उन्हें ज्ञानवान नहीं जानो जो शास्त्र ज्ञान को कहते ही रहते हैं उसके अनुसार जीवन को नहीं बनाते। उसकी यदि अज्ञानी से उपमा दी जाये जो रात-दिन अपने मन के विचारों के अनुसार व्यर्थ ही विवाद करता रहता है-तो अनुचित न होगा। ऐसे अविवेकी पुरुष सन्त सत्पुरुषों के विमल वचनों के मरम को नहीं समझ सकते। उसे बुद्धिमान कौन कहेगा? ""यस्तु क्रियावान् पुरुषः स विद्वान्''-ज्ञानपूर्वक जिसका कर्म है वह वास्तव में विद्वान है। सन्त महात्माओं के सत्संग का पूरा लाभ किन को होता है? जो महापुरुषो के वचन को जीवन में उतार लेते हैं। जो केवल वाणी के धनी हैं, शास्त्रों के अर्थ ही लगाया करते हैं उन वचनों पर अपने जीवन को नहीं चलाते उन लोगों का चित्र सन्त पलटू दास जी इस तरह उतारते हैं।

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