मिसरी मिसरी कीजिए, मुख मीठा नाहीं।
मीठा तब ही होइगा, छिट कावै माहीं।।
बातों ही पहुँचौ नहीं, घर दूरि पयाना।
मारग पन्थी उठि चलै, "दादू' सोह सयाना।।
भाव यह कि मिश्री-मिश्री करने से किसी का मुँह कभी मीठा हुआ है? ओ! मुँह तो तभी मीठा होगा जब उसमें मिश्री की डली डालोगे। चलने से तो डरे और दूर रहे केवल बातों से क्या कोई घर पहुँचा है? पथिक तो चतुर वही कहा जायेगा जिसने चुपचाप अपना मार्ग पकड़ लिया।
मीठा तब ही होइगा, छिट कावै माहीं।।
बातों ही पहुँचौ नहीं, घर दूरि पयाना।
मारग पन्थी उठि चलै, "दादू' सोह सयाना।।
भाव यह कि मिश्री-मिश्री करने से किसी का मुँह कभी मीठा हुआ है? ओ! मुँह तो तभी मीठा होगा जब उसमें मिश्री की डली डालोगे। चलने से तो डरे और दूर रहे केवल बातों से क्या कोई घर पहुँचा है? पथिक तो चतुर वही कहा जायेगा जिसने चुपचाप अपना मार्ग पकड़ लिया।
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