Wednesday, March 16, 2016

मीन काटि जल धोइयै, खाये अधिक प्यास।

मीन काटि जल धोइयै, खाये अधिक प्यास।
रहिमन प्रीति सराहियै, मुएहू मीत की आस।।
अर्थः-मछली को काटकर जल में धो दिया जाता है फिर उसे पकाकर खाया जाता है। खाने के उदरस्त होने पर भी जल की प्यास लगती है। यह इस बात का प्रमाण है कि मछली मरकर, कटकर और पककर भी अपने प्रियतम के मिलन के लिये तड़प रही है। वह अब भी "जल-जल' पुकार रही है।
मरे हुये भी उदर में जल चाहत है मीन।।
अर्थात् मछली मरकर भी पेट में जल माँगती है। प्रिय-मिलन की तीव्र उत्कण्ठा का भला इससे बढ़कर और क्या उदाहरण हो सकता है? सन्तों का कहना है कि अपने मालिक से प्रेम करना है तो ऐसा ही करो। यह एक आदर्श उदाहरण है। कि प्रेम तो वही है कि प्रेमी प्रियतम के बिना क्षणमात्र जीवित न रह सके तथा मरकर भी प्रियतम का ही नाम पुकारता रहे।

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