मन पंछी तब लगि उड़ै, विषय वासना माहिं।
प्रेम बाज़ की झपट में, जब लगि आयौ नाहिं।।
अर्थः-जिस प्रकार दाना चुगने वाला पक्षी दाने की तलाश में चहुँओर उड़ता और घूमता फिरता है; वैसे ही मनुष्य का मन भी विषय रसों को प्राप्त करने तथा अन्यान्य अनेक इच्छाओं की पूर्ति हेतु यत्र-तत्र भटकता रहता है। परन्तु वह तभी तक भटकता है, जब तक कि प्रेम रुपी बाज़ कि झपट में नहीं आया। तथा जब प्रेम रुपी बाज़ ने मन पंछी को झपटकर दबोच लिया, तो फिर भटकने भटकाने वाला ही कहाँ शेष रहा?
प्रेम बाज़ की झपट में, जब लगि आयौ नाहिं।।
अर्थः-जिस प्रकार दाना चुगने वाला पक्षी दाने की तलाश में चहुँओर उड़ता और घूमता फिरता है; वैसे ही मनुष्य का मन भी विषय रसों को प्राप्त करने तथा अन्यान्य अनेक इच्छाओं की पूर्ति हेतु यत्र-तत्र भटकता रहता है। परन्तु वह तभी तक भटकता है, जब तक कि प्रेम रुपी बाज़ कि झपट में नहीं आया। तथा जब प्रेम रुपी बाज़ ने मन पंछी को झपटकर दबोच लिया, तो फिर भटकने भटकाने वाला ही कहाँ शेष रहा?
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