बहुत जनम बिछुड़े थे माधो! एह जनम तुम्हारे लेखै।
कहैं रैदास आस लगि जीवाँ चिर भयौ दरसन पेखै।।
कहैं रैदास आस लगि जीवाँ चिर भयौ दरसन पेखै।।
अर्थः-सन्त रैदास जी का कहना है हे प्रभो! मैं बहुत जन्म तक आपसे बिछुड़ा रहा और अपना प्रत्येक जन्म माया की खातिर बलिदान करता रहा। अब मेरा यह जन्म आपकी खातिर बलिदान हो, तो मेरा काम बने। ऐ मालिक! मैं आपके ही आश्रय जीवित हूँ तथा चिरकाल से आपके दर्शन की झाँकी से वञ्चित हूँ। अब यदि जीवन बलिदान करके भी आपका दर्शन उपलब्ध हो तो मेरे परम सौभाग्य।
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