गद गद बानी कंठ में, आँसू टपकै नैंन।
वह तो बिरहिन राम की, तलफत है दिन रैन।।
प्रेम बराबर जोग ना, प्रेम बराबर ज्ञान।
प्रेम भक्ति बिन साधिबो, सबही थोथा ध्यान।।
वह तो बिरहिन राम की, तलफत है दिन रैन।।
प्रेम बराबर जोग ना, प्रेम बराबर ज्ञान।
प्रेम भक्ति बिन साधिबो, सबही थोथा ध्यान।।
अर्थः-""सन्त चरनदास जी का कथन है कि जब गला रुँधा हो, वाणी पर नियन्त्रण न रहे तथा इसके साथ ही नेत्रों से छम छम अश्रु बहते हों: तो कहना चाहिए कि आत्मा प्रभु दर्शन के लिये व्याकुल है तथा दिन रात प्रभु प्रियतम के बिरह में तड़प रही है।'' ""पुनः कहते हैं कि प्रेम के समान न योग है, न तप साधन, न ही ज्ञान। अन्य शब्दों में यह कि प्रेम ही सच्चा योग है, यही सच्चा तप है तथा सच्चा ज्ञान भी प्रेम ही है। ऐ साधो! प्रेमाभक्ति के बिना सब ज्ञान ध्यान थोथा और खोखला है।
Jai sachdanandji
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