Thursday, February 11, 2016

प्रेमी के मैं कर बिकूं.

प्रेमी के तो कर बिकूँ, यह तो मेरा असूल।
चार मुक्ति दूँ ब्याज में, देय सकहुं नहिं मूल।।

अर्थः-भक्त वत्सल भगवान कितना आश्वासन देते हैं अपने प्रेमी को-वे कहते हैं कि मैं प्रेमी के हाथ में तो बिका ही रहता हूँ।-काश कि वह मुझसे अन्तस्तल से घना घना अनन्य प्यार कर ले। उस प्रेम के बदले में मैं क्या करता हूँ चारों प्रकार की मुक्तियाँ (सायुज्य,सामीप्य, सालोक्य और सारुप्य) तो डार देता हूँ उसकी झोली में-यह तो होता है उस प्रेम रुपी मूल धन का ब्याज-मूल पूँजी तो मैं कभी उसे लौटा सकता ही नहीं।

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