भीखा भूखा
कोई नहीं, गांठी सब की लाल।
गांठ खोल
देखें नहीं, ता ते भये कंगाल।।
फरमाते हैं
कि प्रकृति की ओर से दीन और भूखा कोई नहीं है; सबकी
गठरी में विधाता ने भक्ति तथा नाम के निःसंख्य हीरे-जवाहर और परमार्थ के
कान्तियुक्त मोती बांध दिये हैं। किन्तु क्या किया जाये! कोई अपनी गठरी खोल कर
उनका अवलोकन ही नहीं करता। उनकी ओर ध्यान न होने के कारण ही संसारी मनुष्य
पारमार्थिक धन से वंचित है और इसीलिये कंगाल और दुःखी है।
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