जग से
छत्तीस ह्वै रहो,
राम चरण छह तीन।
तुलसी हरि
के मिलन को, यही मतो प्रवीन।।
अंक तो वही
छह और तीन ही रहेंगे,
केवल उनके स्थान
में परिवर्तन करना है। स्थान में परिवर्तन करने से परिणाम में रात दिन का अन्तर पड़
जाता है। यदि जग से 63 रहते हैं तो असत् में ही रच-पच जाते हैं जिससे हाथ पल्ले
कुछ नहीं पड़ता और जन्म व्यर्थ चला जाता है। इसके विपरीत यदि जग से 36 हो रहते हैं
अर्थात् जग को पीठ देकर मालिक की ओर प्रवृत्त होते हैं तो सत्य में लीन हो जाते
हैं और जन्म मरण के चक्र से छूट कर मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। यह कोई कम लाभ
नहीं है।
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