Friday, January 8, 2016

दोहा 08.01.2016



करनी बिन कथनी इती, ज्यों ससि बिन रजनी।
बिन साहस जिमि सूरमा, भूषण बिन सजनी।।
बाँझ झुलावे पालना, बालक नहीं माहीं।
वस्तु विहीना जानिये, जहँ करनी नाहीं।।
बहु डिम्भी करनी बिना,कथि कथि करि मूए।
सन्तों कथि करनी करी,हरि के सम हूए।। श्री चरण दास जी।

अर्थः-बिना करनी के कथनी ऐसी है जैसे बिना चन्द्रमा के रात या साहस के बिना शूरवीर,नारी के बिना गहना। आचरण के बिना भाषण करते रहना तो ऐसा है जैसे कोई बाँझ स्त्री पालने मे कल्पित बालक को झुलाया करती हो। जहाँ करनी ही नहीं वहां अभीष्ट वस्तु कहां से आयेगी? कितने ही दम्भी अर्थात् केवल दिखावा करने वाले लोग करनी के बिना आत्म ज्ञान की कोरी चर्चा करते करते प्रयाण कर गये-परन्तु सन्त सत्पुरुषों का आदेश है कि जो कुछ कहो उसके अनुसार आचरण भी करो। जिन्होने भी ऐसा किया वे ब्राहृ रुप ही हो गये।

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